गरीबी आंसू से लिखी गई तेरी कहानी .......
बंगला बिन दीवार का , आसमान छ्त;
खून से तेरी खड़ा औरो का भवन.....
तन बिन कपडे , आँचल सूखा हुआ ;
सूद चुकाते गुज़ारा जीवन ........
आग लगाकर ख़ुद को , दो जून रोटी भी न पाई ;
रात तारो को टक -ट्की लगाकर बितायी........
ग़मो के भावंदर में कश्ती समायी ;
साहिल की खोज में ज़िन्दगी गवाई ........
लोगो के महलों को आबाद करके ;
तेल तू , लौ तू , ताहिर तू और जले भी तू ;
पर रोशन करे किसी और का शहर........
जीङ -छिडः ढांचा खड़ा बेबसी की लाठी लेकर ;
कूंचले गए अर्मा और हर संभले कदम .......
काँटों पर खड़ा , आस लगाये मन् ;
साँसे रुक्के या भरे पापी तन ....
ज़ख्म भरते नही , हरे रहते है ;
पीढी दर पीढी शरीर बदलते है .........
जन्मते दोजग मिली , मरते जन्नत ;
आँख खोल खुदा , क्यों हुआ बेखबर......
शतरंज की बिसात बिछी यहाँ पर ;
चाल दर चाल दोहरायी जाती है .......
जीतता कोई नही , हार वक्त से मानी है ;
तारीख थमे हुएँ आगे नही जानी है ......
ताउम्र कट जाती है सही के इंतजार में ;
आखिर बंद घड़ी भी दो बार सही समय बताती है ......
गलती से भी नही फूलो की सेज सोचता है ........
पुश्ते बीत जाती है गरीबी की लकीरो को मिटने में ;
अमीरों को बनाने में , गरीबो को लुटाने में ........
आएना दीदार करते टूट जाता है ;
हश्र उससे भी देखते नही बनता ........
देने वाले ने गरीबी दे है तो जीने की हिम्मत दे ;
वरना मौत दे लम्बी उम्र न दे ............
गुज़रे दौर , सितारे डूबे ;
पौ फटे और गरीबी छूटे .......
बंगला बिन दीवार का , आसमान छ्त;
खून से तेरी खड़ा औरो का भवन.....
तन बिन कपडे , आँचल सूखा हुआ ;
सूद चुकाते गुज़ारा जीवन ........
आग लगाकर ख़ुद को , दो जून रोटी भी न पाई ;
रात तारो को टक -ट्की लगाकर बितायी........
ग़मो के भावंदर में कश्ती समायी ;
साहिल की खोज में ज़िन्दगी गवाई ........
लोगो के महलों को आबाद करके ;
खँडहर घर को अपनी कब्र बनाई ....
तेल तू , लौ तू , ताहिर तू और जले भी तू ;
पर रोशन करे किसी और का शहर........
जीङ -छिडः ढांचा खड़ा बेबसी की लाठी लेकर ;
कूंचले गए अर्मा और हर संभले कदम .......
काँटों पर खड़ा , आस लगाये मन् ;
साँसे रुक्के या भरे पापी तन ....
ज़ख्म भरते नही , हरे रहते है ;
पीढी दर पीढी शरीर बदलते है .........
जन्मते दोजग मिली , मरते जन्नत ;
आँख खोल खुदा , क्यों हुआ बेखबर......
शतरंज की बिसात बिछी यहाँ पर ;
चाल दर चाल दोहरायी जाती है .......
जीतता कोई नही , हार वक्त से मानी है ;
तारीख थमे हुएँ आगे नही जानी है ......
ताउम्र कट जाती है सही के इंतजार में ;
आखिर बंद घड़ी भी दो बार सही समय बताती है ......
पठरी से उतरी गाड़ी कितनो को लिल गई ;
गरीबी जिंदा से ज़िन्दगी छिन गई .......
बैठा रेगिस्तान में पैरो के निशा खोजता है ;
पुश्ते बीत जाती है गरीबी की लकीरो को मिटने में ;
अमीरों को बनाने में , गरीबो को लुटाने में ........
आएना दीदार करते टूट जाता है ;
हश्र उससे भी देखते नही बनता ........
देने वाले ने गरीबी दे है तो जीने की हिम्मत दे ;
वरना मौत दे लम्बी उम्र न दे ............
गुज़रे दौर , सितारे डूबे ;
पौ फटे और गरीबी छूटे .......
aao hum sab milkar garibi hataye
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