साए साए हवा चल रही हैं ! घोर अँधेरा छाया हुआ हैं ! दिसम्बर की ठंडी रात.....कोहरा धीरे धीरे घना होता जा रहा हैं ! च्प च्प करती हुई आवाज़ सन्नाटे को चीरती हुई आगे को बढ रही हैं ! लेम्प पोस्ट की धुंधली रोशनी में एक साया नज़र आता हैं जो तेज़ी से कही बड़ा जा रहा हैं ! वो आदमी कुछ परेशां सा लग रहा हैं ! एक दम से वो सिहर उठता हैं....उसके मन में पिछाली रात तरोताजा हो जाती हैं.....कल तो किसी तरह मरे हुए कुत्ते को जला कर रात काटी थी....बहुत दिनों से पड़ा सड़ रहा था....कोई उसे उठाने नहीं आया था ! उसने बहुत सोचा था पर जब ठण्ड बर्दाश से बाहर हो गयी तो उसे आग लगा दी....मानो दाह संस्कार ही कर दिया हो....बहुत बदबू हुई पर.....नहीं आज भगवान् इतना निशठुर नहीं हो सकता ! मैंने बाबू लोगो को अखबार में पढ़ते सुना था सरकार गरीबो के लिए चौराहों चौराहों पर रात को अलाव का इंतजाम कर रही हैं ! पर कितनी दूर निकल आया हू.....रास्ते में तो बहुत चौराहे निकल गए....पर आवारा कुत्तो के इलावा कोई नहीं था ! ठण्ड बदती ही जा रही हैं ! अपनी आधी बाह की बुशर्ट और फटी पैंट में वो सिकुड़ा जा रहा हैं ! पैरों में रक्त का प्रवाह रुक ही गया हैं....दिमाग कहता हैं बस और नहीं पर मन कहता हैं नहीं आगे बड़ा चौराहा आने ही वाला हैं वहा तो ज़रूर आग जल रही होगी ! लड्खारता हुआ वो चला जा रहा हैं......तभी उसे रोशनी नज़र आती हैं......उसके कदम तेज़ हो गए....बस पहुच गए...अब चैन से रात गुज़रेगी....पर...पर...ये क्या ? रोशनी चारो तरफ रोशनी ही रोशनी........पर अलाव कहा हैं...रोशनी तो खम्बे पे जल रहे अदुव्तीय बल्बो की हैं....यहाँ पर भी अलाव नहीं ! घुटनों ने जवाब दे दिया ! वो वही गिर पड़ा ! हवा अब और तेज़ हो गयी हैं मानो उसकी बेबसी लोगो के कानो तक पहुचने का काम मिला हो उसको !
थोड़ी देर हुई वहा से पुलिस की जीप गुज़री ! ड्राईवर ने बीच चौराहे पर किसी हो पड़ा देखकर गाड़ी रोक दी !
इंस्पेक्टर - "जाओ देखो"
हवालदार - "साहब ! ये तो वही भिखारी हैं जिसको पिचले महीने हफ्ते भर बंद रखा था झूठी चोरी के इलज़ाम में "
इंस्पेक्टर - "चुप बे ! जिंदा हैं या मर गया"
हवालदार - "मर गया हैं साहब.....बहुत ठण्ड पढ़ रही हैं न"
इंस्पेक्टर - "हू ! चलो अच्हा हुआ...गन्दगी कम हुई...पंचनामा भर दो"
इंस्पेक्टर - "नाम...रामू..."
इंस्पेक्टर - "रामू नहीं बे.....रहीम"
हवालदार - "पर....ये तो"
इंस्पेक्टर - "मुख्यमंत्री आवास बन रहा हैं...सारी लकड़िया...क्या फर्क पड़ता हैं...रामू या रहीम....जिंदे जी तो आग नसीब नहीं हुई अब मरने के बाद जले या दफ्ने"
कोहरा घना हो चला ! सफ़ेद चादर सी परत उस आदमी पर बीछ गयी मानो वातावरण भी जानता हो इसे कफ़न भी न नसीब होगा ! पौ फट रही हैं....हल्की हल्की रोशनी होने लगी...और अब हवा भी रुक गयी हैं...किसी पर भी फर्क नहीं पड़ता ! अजीब "ख़ामोशी" छा गयी मानो वातावरण भी दो मिनट की श्रधांजलि दे रहा हो !
Wednesday, December 9, 2009
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bravo......
ReplyDeletebahut dard bhari kahani hai...thoda aur bada kar sakte the ise par theek hai...
ReplyDeleteits a gud one jatin...keep it up!!!
ReplyDeleteNice work..bahut jyaada achee reality bhari imagination hai.....superb
ReplyDeleteShandaar shayari
ReplyDeleteFrases de Amor para namo rado
zabardast shayari
ReplyDeleteFrases de Amor para namo rado
awesome
ReplyDeleteFrases de Amor para namo rado