Wednesday, December 9, 2009
Khamoshi
थोड़ी देर हुई वहा से पुलिस की जीप गुज़री ! ड्राईवर ने बीच चौराहे पर किसी हो पड़ा देखकर गाड़ी रोक दी !
इंस्पेक्टर - "जाओ देखो"
हवालदार - "साहब ! ये तो वही भिखारी हैं जिसको पिचले महीने हफ्ते भर बंद रखा था झूठी चोरी के इलज़ाम में "
इंस्पेक्टर - "चुप बे ! जिंदा हैं या मर गया"
हवालदार - "मर गया हैं साहब.....बहुत ठण्ड पढ़ रही हैं न"
इंस्पेक्टर - "हू ! चलो अच्हा हुआ...गन्दगी कम हुई...पंचनामा भर दो"
इंस्पेक्टर - "नाम...रामू..."
इंस्पेक्टर - "रामू नहीं बे.....रहीम"
हवालदार - "पर....ये तो"
इंस्पेक्टर - "मुख्यमंत्री आवास बन रहा हैं...सारी लकड़िया...क्या फर्क पड़ता हैं...रामू या रहीम....जिंदे जी तो आग नसीब नहीं हुई अब मरने के बाद जले या दफ्ने"
कोहरा घना हो चला ! सफ़ेद चादर सी परत उस आदमी पर बीछ गयी मानो वातावरण भी जानता हो इसे कफ़न भी न नसीब होगा ! पौ फट रही हैं....हल्की हल्की रोशनी होने लगी...और अब हवा भी रुक गयी हैं...किसी पर भी फर्क नहीं पड़ता ! अजीब "ख़ामोशी" छा गयी मानो वातावरण भी दो मिनट की श्रधांजलि दे रहा हो !
Monday, March 23, 2009
ये सुबह क्यों आती है ?
Saturday, March 21, 2009
जीवन की सच्चाई !!
Sunday, March 15, 2009
अब ??
ज़िन्दगी उसके बिन भी थी पहले और अब बिन उसके भी रहेगी अब
पर न वो बात रहेगी न वो अब उसकी कोई सौगात रहेगी अब
वो हमें भूल गए गए तो हम भी उन्हें भूल सकते है अब
बस उसकी दी चोट कसक बन साथ रहेगी अब
Wednesday, March 11, 2009
Tuesday, March 10, 2009
Tuesday, March 3, 2009
Monday, March 2, 2009
Thursday, February 26, 2009
Life with/without You
I was thinking about it, today....................
No one is the author of this poem,
Independent by the persons,
It is miraculously generated,
To give smile to others.
How is this possible?
Is there someone, somewhere for me?
Is this beginning or end
I do not know,
But it is true which i am quiet sure.
There are the words, vows, feelings,
Pushing me hard to express themselves,
Deep from my heart to come.
Is the man who betrays, dishonor
Will remain close to ME like before.
Angry & hurted but not cryin', yellin'
Neither will i blow, plead
But the only thing which i hate
I miss my cruel, hard-hearted friend
And beg GOD take it away.
Who was my strength, my power you will never know,
Leave me alone in this cruel world,
Surrounded by an aura of deep silence
Didn't give me a little hint of his ill-plans
So, do i still love him even right now?
A step which is taken by the time,
Gave me a lesson to learn, I know i will....
Can't save the day what happened, my friend
I would just to make it right again
By moving, filling the crack given by YOU.
The past years together has been GREAT,
When i met you, thanked GOD for giving me such a nice friend
A lot went wrong in our relationship
But not like this which now YOU done to ME.
I love being with YOU, told everything......
There isn't anything which i kept from YOU
For the good way, our lives will change from now,
I hope nothing happen to YOU though MY DEAR FRIEND!!!!!!
I look at YOU not just as a friend
YOU are like best friend......no greater than that.
It seems to me what will happen to me without YOU
Because always YOU help & here for me no matter what
I never told, “how much i love & care for YOU"
Before i get too far with YOU,
ALMIGHTY GOD helped & saved me from YOU
It’s so much better what HE done,
This is new beginning with/without YOU
So don't let it go, come & make it right what YOU done wrong.
Wednesday, February 25, 2009
How to write a Poem ?
To write a poem i must feel something in my heart,
And strip down my words to paper broadly apart.
Then bind them to a situation,
Which in real life i faced.
Arrange them in order from end to end.
I am a writer and they are my slaves.
Now i have to maintain my flow,
And pick them carefully to make a stave.
The words which don't strike throw it away.
What is the use of words that don't tremble the heart?
I am not a lazybones who is wordless,
Exchange phrases and accept obstacles in place,
And know i can make wordings in first attempt
A well-phrased poem gives smile to people
By giving a thought to brain
This is the method i learned from a friend.
Sunday, February 15, 2009
Garibi
बंगला बिन दीवार का , आसमान छ्त;
खून से तेरी खड़ा औरो का भवन.....
तन बिन कपडे , आँचल सूखा हुआ ;
सूद चुकाते गुज़ारा जीवन ........
आग लगाकर ख़ुद को , दो जून रोटी भी न पाई ;
रात तारो को टक -ट्की लगाकर बितायी........
ग़मो के भावंदर में कश्ती समायी ;
साहिल की खोज में ज़िन्दगी गवाई ........
लोगो के महलों को आबाद करके ;
तेल तू , लौ तू , ताहिर तू और जले भी तू ;
पर रोशन करे किसी और का शहर........
जीङ -छिडः ढांचा खड़ा बेबसी की लाठी लेकर ;
कूंचले गए अर्मा और हर संभले कदम .......
काँटों पर खड़ा , आस लगाये मन् ;
साँसे रुक्के या भरे पापी तन ....
ज़ख्म भरते नही , हरे रहते है ;
पीढी दर पीढी शरीर बदलते है .........
जन्मते दोजग मिली , मरते जन्नत ;
आँख खोल खुदा , क्यों हुआ बेखबर......
शतरंज की बिसात बिछी यहाँ पर ;
चाल दर चाल दोहरायी जाती है .......
जीतता कोई नही , हार वक्त से मानी है ;
तारीख थमे हुएँ आगे नही जानी है ......
ताउम्र कट जाती है सही के इंतजार में ;
आखिर बंद घड़ी भी दो बार सही समय बताती है ......
पुश्ते बीत जाती है गरीबी की लकीरो को मिटने में ;
अमीरों को बनाने में , गरीबो को लुटाने में ........
आएना दीदार करते टूट जाता है ;
हश्र उससे भी देखते नही बनता ........
देने वाले ने गरीबी दे है तो जीने की हिम्मत दे ;
वरना मौत दे लम्बी उम्र न दे ............
गुज़रे दौर , सितारे डूबे ;
पौ फटे और गरीबी छूटे .......