Wednesday, December 9, 2009

Khamoshi

साए साए हवा चल रही हैं ! घोर अँधेरा छाया हुआ हैं ! दिसम्बर की ठंडी रात.....कोहरा धीरे धीरे घना होता जा रहा हैं ! च्प च्प करती हुई आवाज़ सन्नाटे को चीरती हुई आगे को बढ रही हैं ! लेम्प पोस्ट की धुंधली रोशनी में एक साया नज़र आता हैं जो तेज़ी से कही बड़ा जा रहा हैं ! वो आदमी कुछ परेशां सा लग रहा हैं ! एक दम से वो सिहर उठता हैं....उसके मन में पिछाली रात तरोताजा हो जाती हैं.....कल तो किसी तरह मरे हुए कुत्ते को जला कर रात काटी थी....बहुत दिनों से पड़ा सड़ रहा था....कोई उसे उठाने नहीं आया था ! उसने बहुत सोचा था पर जब ठण्ड बर्दाश से बाहर हो गयी तो उसे आग लगा दी....मानो  दाह संस्कार ही कर दिया हो....बहुत बदबू हुई पर.....नहीं आज भगवान् इतना निशठुर नहीं हो सकता ! मैंने बाबू लोगो को अखबार में पढ़ते सुना था सरकार गरीबो के लिए चौराहों चौराहों पर रात को अलाव का इंतजाम कर रही हैं ! पर कितनी दूर निकल आया हू.....रास्ते में तो बहुत चौराहे निकल गए....पर आवारा कुत्तो के इलावा कोई नहीं था ! ठण्ड बदती ही जा रही हैं ! अपनी आधी बाह की बुशर्ट और फटी पैंट में वो सिकुड़ा जा रहा हैं ! पैरों में रक्त का प्रवाह रुक ही गया हैं....दिमाग कहता हैं बस और नहीं पर मन कहता हैं नहीं आगे बड़ा चौराहा आने ही वाला हैं वहा तो ज़रूर आग जल रही होगी ! लड्खारता हुआ वो चला जा रहा हैं......तभी उसे रोशनी नज़र आती हैं......उसके कदम तेज़ हो गए....बस पहुच गए...अब चैन से रात गुज़रेगी....पर...पर...ये क्या ? रोशनी चारो तरफ रोशनी ही रोशनी........पर अलाव कहा हैं...रोशनी तो खम्बे पे जल रहे अदुव्तीय बल्बो की हैं....यहाँ पर भी अलाव नहीं ! घुटनों ने जवाब दे दिया ! वो वही गिर पड़ा ! हवा अब और तेज़ हो गयी हैं मानो उसकी बेबसी लोगो के कानो तक पहुचने का काम मिला हो उसको !
थोड़ी देर हुई वहा से पुलिस की जीप गुज़री ! ड्राईवर ने बीच चौराहे पर किसी हो पड़ा देखकर गाड़ी रोक दी !
इंस्पेक्टर - "जाओ देखो"
हवालदार - "साहब ! ये तो वही भिखारी हैं जिसको पिचले महीने हफ्ते भर बंद रखा था झूठी चोरी के इलज़ाम में "
इंस्पेक्टर - "चुप बे ! जिंदा हैं या मर गया"
हवालदार - "मर गया हैं साहब.....बहुत ठण्ड पढ़ रही हैं न"
इंस्पेक्टर -  "हू ! चलो अच्हा हुआ...गन्दगी कम हुई...पंचनामा भर दो"
इंस्पेक्टर - "नाम...रामू..."
इंस्पेक्टर - "रामू नहीं बे.....रहीम"
हवालदार - "पर....ये तो"
इंस्पेक्टर - "मुख्यमंत्री आवास बन रहा हैं...सारी लकड़िया...क्या फर्क पड़ता हैं...रामू या रहीम....जिंदे जी तो आग नसीब नहीं हुई अब मरने के बाद जले या दफ्ने"


कोहरा घना हो चला ! सफ़ेद चादर सी परत उस आदमी पर बीछ गयी मानो वातावरण भी जानता हो इसे कफ़न भी न नसीब होगा ! पौ फट रही हैं....हल्की हल्की रोशनी होने लगी...और अब हवा भी रुक गयी हैं...किसी पर भी फर्क नहीं पड़ता ! अजीब "ख़ामोशी" छा गयी मानो वातावरण भी दो मिनट की श्रधांजलि दे रहा हो !

Monday, March 23, 2009

ये सुबह क्यों आती है ?


रात आती है उसकी सौगाद लाती है
फ़िर से दिल सीने में धड़कने लगता है
और फज्र होते-होते वो चुपके से मुस्कुराकर चली जाती है
ज़िन्दगी फ़िर से मेरी बस वही थम से जाती है

Saturday, March 21, 2009

जीवन की सच्चाई !!

ये लाजिम तो नही की हर बात तुझे बताई जाए
कभी चाह कर भी कोई बात तुझसे छिपाई जाए
उस अंदाज़--बयां का क्या फायदा जो गम दे
झूठ ना सही पर सच्चाई भी तो छिपाई जाए

Sunday, March 15, 2009

अब ??


नही दिया जिसने तावाजुफ्फ़ तेरी दोस्ती का,
वो क्या साथ निभाएगा अब तेरा
गम न करो उसके जाने का,
खुशी मनाओ की हुआ फ़िर सवेरा ....

ज़िन्दगी उसके बिन भी थी पहले और अब बिन उसके भी रहेगी अब
पर न वो बात रहेगी न वो अब उसकी कोई सौगात रहेगी अब
वो हमें भूल गए गए तो हम भी उन्हें भूल सकते है अब
बस उसकी दी चोट कसक बन साथ रहेगी अब

Wednesday, March 11, 2009

न रूठो ......

जो भी था कह दिया,

अब कुछ नही बाकी है

तुम्हे रुसवा किया तो,

हमारी भी जान बची अब आधी है

लौट आओ अब........

सीने में दफ़न याद तेरी,

सौदा करती है रोज़ मुझसे

आएगा वो ठहर ज़रा,

जी ले कुछ और रोज़ उसके लिए

Tuesday, March 10, 2009



डूबते हुए सूरज रोशनी मध्यम कर गया,
की ज़िन्दगी में कुछ कहने को बाकी क्या रह गया

यादों को वक्त धुंधला कर गया,
उसने जो दर्द दिया बस वो रह गया

धोखा था नज़रो में जाना न गया
वो दूर जाते रहे और मै अकेला रह गया


ये सड़क न इतनी गुमनाम होगी,
तेरे बगैर भी हर शाम होगी

यादो के सहारे ही बीतेगी ज़िन्दगी,
पर उसमे न तेरी याद होगी

धोखा था नज़रो में जान गया,
अब इसी धोखे पर ज़िन्दगी आबाद होगी

Tuesday, March 3, 2009

पहचानता नही आईना अपने अक्स को,
ढ़ूढ़्ता यहाँ हर शक्स अपने शक्स को,
हैंरान बड़ा देख अपनी शक्ल को,
अंजान नज़रों से जोड़ा क्यों अक्ल को

Monday, March 2, 2009

बंद आँखों में खवाब सजे, खुली में उसकी सूरत
खुली से देखने लगे ख्वाब, तो फ़िर कहा जाए सूरत

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बंद आँखों में खवाब सजे, खुली में उसकी सूरत
न खुलने के लिए जो बंद हुई, उसमे न ख्वाब न सूरत

Thursday, February 26, 2009

Life with/without You

I was thinking about it, today....................
No one is the author of this poem,
Independent by the persons,
It is miraculously generated,
To give smile to others.

How is this possible?
Is there someone, somewhere for me?
Is this beginning or end
I do not know,
But it is true which i am quiet sure.

There are the words, vows, feelings,
Pushing me hard to express themselves,
Deep from my heart to come.
Is the man who betrays, dishonor
Will remain close to ME like before.

Angry & hurted but not cryin', yellin'
Neither will i blow, plead
But the only thing which i hate
I miss my cruel, hard-hearted friend
And beg GOD take it away.

Who was my strength, my power you will never know,
Leave me alone in this cruel world,
Surrounded by an aura of deep silence
Didn't give me a little hint of his ill-plans
So, do i still love him even right now?

A step which is taken by the time,
Gave me a lesson to learn, I know i will....
Can't save the day what happened, my friend
I would just to make it right again
By moving, filling the crack given by YOU.

The past years together has been GREAT,
When i met you, thanked GOD for giving me such a nice friend
A lot went wrong in our relationship
But not like this which now YOU done to ME.
I love being with YOU, told everything......
There isn't anything which i kept from YOU

For the good way, our lives will change from now,
I hope nothing happen to YOU though MY DEAR FRIEND!!!!!!
I look at YOU not just as a friend
YOU are like best friend......no greater than that.
It seems to me what will happen to me without YOU
Because always YOU help & here for me no matter what
I never told, “how much i love & care for YOU"

Before i get too far with YOU,
ALMIGHTY GOD helped & saved me from YOU
It’s so much better what HE done,
This is new beginning with/without YOU
So don't let it go, come & make it right what YOU done wrong.

 

 

Wednesday, February 25, 2009

How to write a Poem ?

To write a poem i must feel something in my heart,


And strip down my words to paper broadly apart.


Then bind them to a situation,


Which in real life i faced.


Arrange them in order from end to end.


I am a writer and they are my slaves.


Now i have to maintain my flow,


And pick them carefully to make a stave.


The words which don't strike throw it away.


What is the use of words that don't tremble the heart?


I am not a lazybones who is wordless,


Exchange phrases and accept obstacles in place,


And know i can make wordings in first attempt


A well-phrased poem gives smile to people


By giving a thought to brain


This is the method i learned from a friend.


Sunday, February 15, 2009

Garibi

अभिछिप्त था बचपन, विछिप्त हुई जवानी ;
गरीबी आंसू से लिखी गई तेरी कहानी .......

बंगला बिन दीवार का , आसमान छ्त;
खून से तेरी खड़ा औरो का भवन.....

तन बिन कपडे , आँचल सूखा हुआ ;
सूद चुकाते गुज़ारा जीवन ........


आग लगाकर ख़ुद को , दो जून रोटी भी न पाई ;
रात तारो को टक -ट्की लगाकर बितायी........


ग़मो के भावंदर में कश्ती समायी ;
साहिल की खोज में ज़िन्दगी गवाई ........

लोगो के महलों को आबाद करके ;
खँडहर घर को अपनी कब्र बनाई ....

तेल तू , लौ तू , ताहिर तू और जले भी तू ;
पर रोशन करे किसी और का शहर........

जीङ -छिडः ढांचा खड़ा बेबसी की लाठी लेकर ;
कूंचले गए अर्मा और हर संभले कदम .......

काँटों पर खड़ा , आस लगाये मन् ;
साँसे रुक्के या भरे पापी तन ....

ज़ख्म भरते नही , हरे रहते है ;
पीढी दर पीढी शरीर बदलते है .........

जन्मते दोजग मिली , मरते जन्नत ;
आँख खोल खुदा , क्यों हुआ बेखबर......

शतरंज की बिसात बिछी यहाँ पर ;
चाल दर चाल दोहरायी जाती है .......

जीतता कोई नही , हार वक्त से मानी है ;
तारीख थमे हुएँ आगे नही जानी है ......

ताउम्र कट जाती है सही के इंतजार में ;
आखिर बंद घड़ी भी दो बार सही समय बताती है ......

पठरी से उतरी गाड़ी कितनो को लिल गई ;
गरीबी जिंदा से ज़िन्दगी छिन गई .......

बैठा रेगिस्तान में पैरो के निशा खोजता है ;
गलती से भी नही फूलो की सेज सोचता है ........

पुश्ते बीत जाती है गरीबी की लकीरो को मिटने में ;
अमीरों को बनाने में , गरीबो को लुटाने में ........

आएना दीदार करते टूट जाता है ;
हश्र उससे भी देखते नही बनता ........

देने वाले ने गरीबी दे है तो जीने की हिम्मत दे ;
वरना मौत दे लम्बी उम्र न दे ............

गुज़रे दौर , सितारे डूबे ;
पौ फटे और गरीबी छूटे .......

Saturday, February 14, 2009

Khwaab sajana, bhul jana, yaad kar aansu bahana;
Tutti laau ko kab tak jaalana hoga........

Bichade apne, dhumil pawan, parchaeeyo ka taata;
kya marne tak panchi ko kaad karna hoga........

Faila dhuwaa, gajeel nayaan, baato ka kabhi khatam na hona;
Zinda hokar roz fir marna hoga..........

Badal garjaan, tutte bhawaan, khud se darna;
Jaag kar taare ginanna haar roz hoga.......

Bananna, bigadna, bigad ke dobaara bananna;
Chalta rahega, kabhi na ye khatam hoga.......

Thursday, February 12, 2009

Lamba hai raasta, koi aant nahi iska;
Mushafir hu zindagi ka, chale ja raha hu

Dhup hai, chaaw hai, to kahi barish ke mooti bhi hai;
Nafaraat aur mohabbat ke beech doole ja raha hu

Kuch dafaan hai neeche iske, kuch zinda hai iske upar;
En sabke beech apna mukaam dhunde ja raha hu

Khookhale peedh hai jaise intzaar mein kisi ke;
Ghar ko main bhi apne khuje ja raha hu

Paatiya surkh huye dhup se hai ya murjha gayi hai;
Dekhane khada intzaar mein jaale ja raha hu

Mil paunga kya kabhi main apne aap se "jatraza"
Puchata khuda se yahi main subah-shaam hu

Tuesday, February 10, 2009

Marna chahata hu par maar nahi pata;
Jeete-jee jo maara gaya hu main.......

Hunaar uska ki sheeshee mein utaar gaya;
Jab se dil se nikala gaya hu main.........

Meri pehchaan, pehchaan kar rahi hai khud ki;
Jis din se unse milaya gaya hu main.......

Zamaana Hairaat mein hai mere sudhaar jane par;
Jabki beizzat hokar thukaraya gaya hu main......

Khufr hu, jo nafaaat ibadaat baan gayi;
Khuda ke daar se bhi khali haath gaya hu main....

Khawaaish thi ki sehaara bandhe "jatraza" ke sar par;
Wo lamha bhi hakeekat mein sach hu aakar meri kabr par.......
Maine aaj apni khushi se intekaam liya;
Par wo mai nahi meri bebasi thi jisne ye kaam kiya

Mere nasiib ne gaam ka daman tham liya;
Par wo mai nahi meri zarurat thi jisne ye kaam kiya

Maine apni izzat abru, ghar baar ko nilam hone diya;
Par wo mai nahi uski mohhabat thi jisne ye kaam kiya

Mere zameer ne zindagi ko jehar ka inaam diya;
Par wo main nahi uski bewafa.ee thi jisne ye kaam kiya

Aee Parvaat-a-negah baksh dena us chand ko;
Galti unki nahi meri thi jo maine unse pyaar kiya....

Monday, February 9, 2009

Mashuur hue kuch is tarah, ki Gumnaam ho gaye;
Maut ke fariste ko bhi dhundhe na mile.........
Angaar par chalane wale, Barf se darte nahi;
Aaisa kyu hota hai, hum samze nahi..........

Raftaar se chalane wale, fir sambhalte nahi;
Aaisa kyu hota hai, hum samze nahi..........

Band aankh karne wale, kabhi kholte nahi;
Aaisa kyu hota hai, hum samze nahi..........

Socha aaj Samze, koun hai ye "jatraza"
Par dhundane se bhi wo hume mile nahi......

Tuesday, February 3, 2009

Tapaati dopahir ki wo saard raatein;
Har subah ki dhoop par kurbaan rateein......

Ye khamooshi.yaan kehna chahti hai kuch;
Ki ehsaas abhi baki hai un pal mein........
Mazhaab bani kaum bani;
Dil.lo ko na jod.ne ke liye diwaar bani.....

Kabhi asshiq se pucha ki wo kya chahta hai mere khudaya;

Maut ke baad mile sab mitti mein "jatraza";
Par kahi to kabr bani to kahi shamshaan bani......



Friday, January 30, 2009

Love is great Healer !!

gar chahte ho aman o chain to kuch na karo;
bas muskurao ke keh do ki koi baat nahi....